क्रिया (Kriya) किसे कहते है ।
क्रिया (Kriya)– जिस शब्द अथवा शब्द-समूह के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा किए जाने का बोध हो, उसे क्रिया कहते है। जैसे- राधा नाच रही है। राकेश दूध पी रहा है। निर्भय बाजार जा रहा है। इसमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शब्दों से कार्य-व्यापार का बोध हो रहा है। इन सभी शब्दों से किसी कार्य के करने अथवा होने का बोध हो रहा है। अतः ये क्रियाएँ है।
धातु- क्रिया के मूल रूप को धातु कहते है। उदाहरण- उठ, बैठ, पढ़, लिख, सो, खा आदि। धातु में ‘ना’ प्रत्यय जोड़कर क्रिया का सामान्य रूप बनता है। उदाहरण- पढ़ + ना = पढ़ना, लिख + ना = लिखना। उपर्युक्त वाक्यों में लिख क्रिया सभी वाक्यों में समान है। यही क्रिया का मूल रूप है। परंतु लिंग, वचन तथा काल के प्रभाव के कारण उसका रूप बदल जाता है।
कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद होते हैं-
- सकर्मक क्रिया – वे क्रियाएँ जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है, उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं। सकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म के साथ में होता है, अर्थात सकर्मक क्रिया में कर्म पाया जाता है। उदाहरण – माली पौधों को सींच रहा है। मोहित पतंग उड़ा रहा है। मैं निबंध लिखता हूँ। उपर्युक्त तीनों वाक्यों में क्रिया ‘सींच रहा है’ ‘उड़ा रहा है’ और लिखता हूँ का फल क्रमशः ‘पौधों,’ ‘पतंग’ तथा निबंध पर पड़ रहा है, अतः ये सकर्मक क्रियाएँ है।
सकर्मक क्रिया के दो भेद होते है – 1. पूर्ण सकर्मक क्रिया 2. अपूर्ण सकर्मक क्रिया
एककर्मक (पूर्ण सकर्मक) क्रिया- जिन क्रियाओं का एक कर्म होता है, उन्हें एककर्मक क्रिया कहते है। उदाहरण- खुशी ने कविता लिखी।
सुमन ने चित्र बनाया। रूबी ने खाना बनाया। उपर्युक्त तीनों वाक्यों में ‘कविता’, ‘चित्र’ तथा खाना एक-एक कर्म है। अतः यहाँ एककर्मक क्रिया है।
द्विकर्मक (अपूर्ण सकर्मक) क्रिया – जिन क्रियाओं के दो कर्म होते है, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते है। उदाहरण- शिक्षक ने विद्यार्थी को पुस्तक दी। सोहित ने मित्रों को गुड़ खिलाया। उपर्युक्त दोनों वाक्यों में ‘पुस्तक’, ‘विद्यार्थी’ तथा ‘मित्रों’, ‘गुड़’ दो-दो कर्म है। अतः यहाँ द्विकर्मक क्रिया है।
- अकर्मक क्रिया – जिस क्रिया का फल कर्म पर न पड़कर कर्ता पर पड़ता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म के बिना होता है, अर्थात अकर्मक क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता है। उदाहरण – वह हँसता है। बच्चा रोता है। इन वाक्यों में ‘हँसता है’, ‘रोता है’ अकर्मक क्रियाएँ हैं, क्योंकि इनका फल क्रमश: ‘वह’ और ‘बच्चा’ पर पड़ता है। कुछ अकर्मक क्रियाएँ इस प्रकार है-
सोना, जागना, हँसना, दौड़ना, भागना, अकड़ना, उछलना, खेलना, डरना, नाचना आदि।
प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया के भेद –
1.सामान्य क्रिया- जिस वाक्य में केवल एक क्रिया हो, उसे सामान्य क्रिया कहते है। उदाहरण- रवि ने पुस्तक पढ़ी। श्याम आम खाता है। राधा आई।
2.सहायक क्रिया- जो क्रिया पदबंध में मुख्य अर्थ न देकर उसकी सहायक हो अर्थात् मुख्य क्रिया के अलावा जो भी अंश शेष रह जाता है, उसे सहायक क्रिया कहते है। उदाहरण- तुम खेल रहे थे। इस वाक्य में खेल मुख्य क्रिया है और रहे थे सहायक क्रिया के रूप में कार्य कर रही है
- संयुक्त क्रिया- जो क्रिया दो या दो से अधिक भिन्नार्थक क्रियाओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। जैसे – उमा ने खाना बना लिया। खेमराज ने खाना खा लिया।
4.प्रेरणार्थक क्रिया- जिस वाक्य में कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, उसे प्रेरणार्थक क्रिया कहते है। उदाहरण– रतन महेश से पत्र लिखवाता है। , सविता, कविता से कपड़े धुलवाती है। , अध्यापक बच्चों से पाठ पढ़वाता है।
5.पूर्वकालिक क्रिया– जब कर्ता एक क्रिया को समाप्त करके तत्काल किसी दूसरी क्रिया को आरंभ करता है, तब पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। उदाहरण- विकास पाठ पढ़कर सो गया। वह नहाकर चला गया। मनीषा खाना खाकर गई।
- सजातीय क्रिया – किसी वाक्य में प्रयुक्त कर्म तथा क्रिया पद एक ही धातु से बने हों तो, उसे सजातीय क्रिया कहते है। उदाहरण- भारतीय सेना ने लड़ाई लड़ी। इस वाक्य में वाक्य का कर्म ‘लड़ाई’ है जो कि लड़ धातु से बना है।
- कृदंत क्रिया- जो क्रियाएँ धातु में प्रत्यय लगाकर बनाई जाती है, उन्हें कृदंत क्रियाएँ कहते है। उदाहरण – (चल धातु से = चलना, चलता, चलकर, लिख धातु से = लिखना, लिखता, लिखकर) ।
- नामधातु क्रिया – जो क्रियाएँ किसी मूल धातु से न बनकर संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण शब्दों में ‘ना’ जोड़कर बनती है, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं। उदाहरण– (चमक (संज्ञा) + ना = चमकना, अपना (सर्वनाम) + ना = अपनाना , गरम (विशेषण) + ना = गरमाना)