Karak

कारक (Karak) की परिभाषा

 

 कारक (Karak)

किसी वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम पदों का उस वाक्य की क्रिया से जो संबंध होता है, उसे कारक/परसर्ग  कहते हैं। जैसे – कृष्ण ने कंश को मारा। इस वाक्य में ‘कृष्ण’ कर्ता है। ‘ने’ कारक है, ‘कंश’ कर्म है, ‘को’ कारक है, और मारा एक क्रिया है। 

 

कारक के भेद 

हिन्दी व्याकरण में कारक के आठ भेद होते है। विभक्ति चिह्नों सहित उनके नाम निम्नलिखित है – 

 

1.कर्ता कारक (विभक्ति चिह्न ‘ने’) –  कर्ता का अर्थ होता है – करने वाला। शब्द के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं। पहचान – क्रिया से पहले ‘कौन’ या ‘किसने’ लगाकर प्रश्न करने पर, जो उत्तर आता है, वही कर्ता कारक है। उदाहरण – (1) सौरभ ने खाना खाया। (किसने खाना खाया?) सौरभ –  सौरभ कर्ता कारक है। (2) पंकज पुस्तक पढ़ रहा है। (कौन पढ़ रहा है?) ‘पंकज’-  पंकज कर्ता कारक है।

 

2.कर्म कारक (विभक्ति चिह्न ‘को’) – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का प्रभाव या फल पङे, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ सामान्यतः ‘को’ विभक्ति आती है। पहचान –  क्रिया से पहले ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने पर, जो उत्तर आता है, वही कर्म होता है। उदाहरण – (1) राधा ने खाना खाया। (क्या खाया?) ‘खाना’ – ‘खाना’ कर्म कारक है। (2) अमित ने सुधा को पढ़ाया। (किसको पढ़ाया?) सुधा को – ‘सुधा’ कर्म कारक है।

 

3.करण कारक (विभक्ति चिह्न ‘से’ या ‘के द्वारा’) कर्ता जिसकी सहायता से क्रिया करता है, उसे करण कारक कहते हैं। पहचान – क्रिया के साथ किससे, किसके साथ, किसके द्वारा लगाकर प्रश्न किए जाते हैं। जो शब्द इन प्रश्नों के उत्तर में आते हैं, वे करण कारक होते हैं। उदाहरण- (1) आकाश ने राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार पाया। आकाश ने किसके द्वारा पुरस्कार पाया? – राष्ट्रपति के द्वारा। (2) मुझे बस से प्रयाग जाना है। मुझे प्रयाग किससे जाना है?- बस से। (3) बच्चे पिता जी के साथ खेल रहे हैं। बच्चे किसके साथ खेल रहे हैं? -पिता जी के साथ।

 

4.संप्रदान कारक (विभक्ति चिह्न ‘को’, के लिए) – जहाँ कर्ता जिसके लिए कार्य करता है या जिसे कुछ देता है, उसे बताने वाले शब्द संप्रदान कारक कहलाते हैं। पहचान – क्रिया से पहले  ‘किसको’, ‘किसके लिए’ तथा ‘किस हेतु’ प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर की जा सकती है। उदाहरण- (1) राधा ने सबको भोजन खिलाया। राधा ने किसको भोजन खिलाया? – सबको। मोहन राकेश के लिए फल लाया। मोहन किसके लिए फल लाया? – राकेश के लिए। 

 

5.अपादान कारक (विभक्ति चिह्न ‘से’) – जिस शब्द से संज्ञा और सर्वनाम से अलग होने, तुलना करने, दूरी बताने, डरने, लजाने आदि के भाव का पता चलता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। पहचान- क्रिया के साथ कहाँ से और किससे लगाकर प्रश्न किया जाता है, फिर उसका जो उत्तर आता है, वह अपादान कारक होता है। उदाहरण – (1) राधा कोमल से सुंदर है। राधा किससे सुंदर है? – कोमल से। (2) मोहन दुकान से वस्त्र लाया। मोहन कहाँ से वस्त्र लाया? – दुकान से। (3) शिवानी साँप से डर गई। शिवानी किससे डर गई ? –  साँप से। (4) वृक्ष से पत्ते गिरते हैं। पत्ते किससे गिरते हैं? – वृक्ष से। 

 

6.संबंध कारक (विभक्ति चिह्न का, के, की, रा. रे, री, ना, ने, नी’) – जिस शब्द से दो संज्ञाओं अथवा सर्वनामों का आपसी संबंध ज्ञात होता है, वह संबंध कारक कहलाता है। पहचान – संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ किसका, किसकी, किसके, किसने आदि शब्दों को लगाकर प्रश्न करके उनके उत्तर प्राप्त किए जाते हैं। वे ही उत्तर संबंध कारक कहलाते हैं। उदाहरण – (1) यह श्याम  का घर है। यह घर किसका है? – श्याम  का (2) कल सुनीता की शादी है। कल किसकी शादी है?  सुनीता की। संध्या पिता जी के साथ स्कूल गई। संध्या किसके साथ स्कूल गई? – पिता जी के साथ।

 

7.अधिकरण कारक (विभक्ति चिह्न ‘में’, ‘पर) – संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के समय, स्थान, अवसर आदि का पता चलता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। पहचान –  वाक्य में क्रिया के साथ कहाँ लगाकर प्रश्न किया जाता है। प्राप्त उत्तर ही अधिकरण कारक कहलाता है। उदाहरण

– (1) तोता पिंजरे में रहता है। तोता किसमें रहता है? – ‘पिंजरे में।  पेड़ पर मैना बैठी है। मैना कहाँ बैठी है? – पेड़ पर।

 

8.संबोधन कारक (विभक्ति चिह्न हे ! अरे ! ओ !) –  जिन शब्दों का प्रयोग किसी को बुलाने या पुकारने अथवा संबोधित करने आदि के लिए किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं। पहचान – संबोधन कारक का प्रयोग वाक्य के प्रारंभ में होता है तथा इसके बाद प्रायः ( !) संबोधन चिह्न भी लगाया जाता है। उदाहरण – (1) अरे राम! तुम कब आए ? (‘अरे राम!’ संबोधन कारक है)

 

विशेष – करण और अपादान कारक – दोनों का परसर्ग ‘से’ होता है, परंतु दोनों में अंतर है। करण कारक में ‘से’ परसर्ग का प्रयोग साधन के अर्थ में किया जाता है, जबकि अपादान कारक में ‘से’ परसर्ग का प्रयोग अलग होने, दूरी बताने, डरने, लजाने, तुलना करने आदि के अर्थ में किया जाता है।

 

विभक्ति       कारक  चिह्न (परसर्ग )     अर्थ    पहचान 
प्रथमा  कर्ता कारक      

 ने 

काम करने वाला  कौन, किसने 
द्वितीया   कर्म कारक    

  को 

जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़े  किसे , क्या 
तृतीया  करण कारक  से , के द्वारा (साधन के लिए  ) क्रिया का साधन  किसके , किसके द्वारा 
चतुर्थी   सम्प्रदान कारक  को (देने के भाव से ) ,के लिए  जिसके लिए क्रिया की जाए  किसके लिए , किसको 

पंचमी 

अपादान करक 

से (अलगाव के लिए)

एक वस्तु का दूसरी वस्तु   से अलग होना ,तुलना करना ,डर का भाव 

कहाँ से 

षष्ठी  संबंध कारक  का,के, की ,ना, ने, नी, रा, रे, री, 

<

एक शब्द का दूसरे शब्द से संबंध  किसका ,तुम्हारा ,अपना 
सप्तमी  अधिकरण कारक  में ,पर  क्रिया का आधार  किसमें ,किस पर 

संबोधन 

संबोधन 

हे ! अरे ! ओ !

किसी को पुकारना /बुलाना

किसको 

 

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