Alankar

 

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अलंकार(Alankar) की परिभाषा, भेद, और उपभेद उदाहरण सहित समझें

Alankar
अलंकार की परिभाषा

 

अलंकार(Alankar), साहित्य की आत्मा में एक ऐसी अनूठी लहर है जो भाषा को प्राणवान, भावपूर्ण और संगीतमय बनाती है। यह कला का वह अमूल्य उपकरण है जो शब्दों की शक्ति और विशिष्टता को उजागर करता है, जिससे कविता, गीत, नाटक और अन्य साहित्यिक कृतियों में इसका योगदान अतुलनीय हो जाता है।

इस विवरण में, हम अलंकार के सार को समझने का प्रयास करेंगे। हम अलंकार की व्याख्या, उसकी उत्पत्ति, विभिन्न प्रकार, और उनके वर्गीकरण पर गहन दृष्टि डालेंगे। प्रत्येक अलंकार प्रकार के साथ, हम सटीक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, जिससे पाठक इस विषय को गहराई से समझ सकें और अपनी समझ को और अधिक समृद्ध बना सकें।

आइए, साहित्य के इस रहस्यमय संसार में प्रवेश करें, जहाँ अलंकार(Alankar) की ध्वनियाँ मौन वातावरण को संगीत से भर देती हैं। यह यात्रा हमें भाषा के सौंदर्य और शक्ति की एक नई समझ प्रदान करेगी, जो हमारे साहित्यिक अनुभव को समृद्ध और गहन बनाएगी।

अलंकार की परिभाषा (Alankar Ki Paribhasha)

अलंकार, भाषा का एक अद्भुत आभूषण है जो साहित्य के हृदय को स्पंदित करता है। यह काव्य, कविता, गीत, नाटक और अन्य साहित्यिक विधाओं में प्रयुक्त किया जाता है, ताकि शब्दों को जीवंत, लयात्मक और भावपूर्ण बनाया जा सके।

कवि अलंकार के माध्यम से अपनी अंतर्दृष्टि, भावनाओं और कल्पनाशीलता को प्रकट करता है। यह भाषा और संवेदनाओं का एक ऐसा संगम है, जो सौंदर्य, प्रभाव और अर्थ की गहराई को उजागर करता है।  अलंकार(Alankar) वह कला है जो साधारण शब्दों को असाधारण अनुभूति में बदल देता है।

अलंकार काव्यिक भाषा को एक नया आयाम देता है, और भाषा को रंगीन और सौंदर्यपूर्ण मनमोहक बनाता है। यह साहित्य का वह आभूषण है जो रचना को न केवल सजाता है, बल्कि उसे गहन अर्थ से भी भर देता है। कवि इस कला का उपयोग करके अपनी रचनाओं को ऐसा रूप देता है जो पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ता है, उसे रसमग्न करता है और आनंद की अनुभूति कराता है।

अलंकार की उत्पत्ति

अलंकार शब्द का प्रथम उपयोग संस्कृत के विद्वान आचार्य भामह ने किया था। उन्होंने इसे सौंदर्यशास्त्रीय उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे भाषा की अद्वितीय सुंदरता और प्रभाव को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

अलंकार के भेद (Alankar Ke Bhed)

 

 अलंकार(Alankar) का मूल अर्थ है ‘सजावट’ या ‘श्रृंगार’। साहित्य और काव्य के क्षेत्र में, अलंकार भाषा को अधिक समृद्ध, सुंदर और रसपूर्ण बनाने का एक माध्यम है। यह वाक्य रचना को गहराई प्रदान करता है और अर्थ को विस्तार प्रदान करता है, जिससे श्रोता या पाठक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

अलंकार के कुशल प्रयोग से, एक साधारण कथन भी विशिष्ट भावनाओं या विचारों को व्यक्त करने में सक्षम हो जाता है। यह वाक्यों में माधुर्य, गतिशीलता और ध्वनि सौंदर्य का समावेश करता है, जो पाठकों को मनोरंजन और आनंद प्रदान करता है।

अलंकार के विभिन्न प्रकारों को समझने से, हम भाषा की विविधता और उसकी अपार संभावनाओं का आस्वादन कर सकते हैं। आगामी खंडों में हम अलंकार के इन विविध रूपों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे, जो भाषा के इस रोचक पहलू को और अधिक स्पष्ट करेगा।

  1. शब्दालंकार (Shabdalankar)
  2. अर्थालंकार (Artha Alankar)
  3. उभयालंकार (Ubhaya Alankar)
  4. पाश्चात्य अलंकार (Pashchatya Alankar)

1. शब्दालंकार (Shabdalankar)

शब्दालंकार भाषा का एक ऐसा सौंदर्य है, जो शब्दों के चयन और उनके ध्वनि-सौंदर्य पर आधारित होता है। यह काव्य का वह आभूषण है, जो विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से उत्पन्न होता है और उनकी अनूठी ध्वनि से एक विशेष चमत्कार पैदा करता है।

शब्दालंकार की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें प्रयुक्त शब्दों को बदलने पर अलंकार(Alankar) का प्रभाव समाप्त हो जाता है। यदि किसी पंक्ति में प्रयुक्त शब्द को उसके समानार्थी शब्द से बदल दिया जाए, तो वह विशेष सौंदर्य या चमत्कार जो मूल शब्द से उत्पन्न हुआ था, लुप्त हो जाता है।

शब्द के दो पहलू होते हैं – ध्वनि और अर्थ। शब्दालंकार मुख्यतः शब्द की ध्वनि पर केंद्रित होता है। यह ध्वनि-सौंदर्य ही है जो शब्दालंकार को जन्म देता है और उसे विशिष्ट बनाता है।

इस प्रकार, शब्दालंकार काव्य में एक ऐसा तत्व है जो न केवल अर्थ को समृद्ध करता है, बल्कि भाषा को श्रवण-मधुर भी बनाता है। यह कविता को एक ऐसा आयाम देता है, जहाँ शब्दों का चयन न केवल अर्थ के लिए, बल्कि उनकी ध्वनि और उससे उत्पन्न होने वाले सौंदर्य के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

शब्दालंकार के भेद

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. पुनरुक्ति अलंकार
  4. विप्सा अलंकार
  5. वक्रोक्ति अलंकार
  6. श्लेष अलंकार

अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar)

अनुप्रास अलंकार(Alankar) में एक ही वर्ण की आवृत्ति से सुंदरता और मेलोडिक गति प्राप्त होती है। यह अलंकार वर्ण समानार्थी शब्दों के विकल्पों में प्रयुक्त होता है। अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अनु प्रास, यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार-बार और प्रास का अर्थ होता है- वर्ण। जब किसी वर्ण की बार बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है। जैसे-

उदाहरण:जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।

विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।

अनुप्रास के उपभेद:

  • छेकानुप्रास
  • वृतानुप्रास
  • लाटानुप्रास
  • अत्नयानुप्रास
  • श्रुत्यानुप्रास

छेकानुप्रास अलंकार

जहाँ पर स्वरुप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार(Alankar) होता है वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-

उदाहरण :

रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठे। साँसें भरि आँसू भरि कहत दई दई।

वृत्यानुप्रास अलंकार

जब एक व्यंजन की आवर्ती अनेक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं। जैसे-

उदाहरण – 

चामर- सी, चन्दन सी, चंद सी, चाँदनी चमेली चारु चंद- सुघर है।

लाटानुप्रास अलंकार

जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो तथा प्रत्येक जगह पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। अथार्त जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवर्ती उसी अर्थ में हो वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-

उदाहरण :

तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ, तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।

अन्त्यानुप्रास अलंकार

जहाँ अंत में तुक मिलती हो वहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है। जैसे-

उदाहरण :

लगा दी किसने आकर आग। कहाँ था तू संशय के नाग ?

श्रुत्यानुप्रास अलंकार

जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वर्षों की आवर्ती हो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है। जैसे-

उदाहरण :

दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।

यमक अलंकार (Yamak Alankar)

यमक अलंकार(Alankar) एक प्रकार का अलंकार है जिसमें एक ही शब्द की आवृत्ति हो लेकिन अर्थ सर्वथा भिन्न – भिन्न हो  । इससे वाक्य का अर्थ प्रतिभावान और प्रतिरूपी होता है, जिससे भाषा में रूचिकर और विचित्रता आती है।

उदाहरण: “कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।”

इस उदाहरण में ‘कनक’ शब्द का दोहरा प्रयोग होकर उसकी धातु और स्वर्ण दोनों अर्थों में वाक्य को संवादित किया गया है।

श्लेष अलंकार (Shlesh Alankar)

श्लेष अलंकार – जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण – रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून।।

स्पष्टीकरण – दी गई पंक्ति में ‘पानी’ के तीन अर्थ हैं- चमक (मोती के पक्ष में), प्रतिष्ठा (मनुष्य के पक्ष में), जल (चूने के पक्ष में), अतः इस दोहा में ‘श्लेष’ अलंकार है।

(iv) वक्रोक्ति अलंकार – जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है। वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद होते हैं। 1. काकु वक्रोक्ति अलंकार     2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार

उदाहरण – कौन द्वार पर राधे में हरि । क्या वानर का काम यहाँ । ।

 

(v) विप्सा अलंकार – जब आदर, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति को ही विप्सा अलंकार कहते है।

उदाहरण – अमर्त्य वीर पुत्र हो, प्रतिज्ञा सोच लो, प्रशस्त पथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो |

स्पष्टीकरण – इस उदाहरण में ‘बढ़े चलो बढ़े चलो’ शब्द की आवृति हुयी है।

 

(vi) पुनरुक्ति अलंकार – पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है- पुनः +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है। जैसे-

ठुमुकि-ठुमुकि रुनझुन धुनि-सुनि,

कनक अजिर शिशु डोलत।

2. अर्थालंकार (Artha Alankar)

जिस जगह पर अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार होता हो उस जगह अर्थालंकार होता है।
काव्य में जहाँ शब्दों के प्रयोग के कारण नहीं बल्कि अर्थ की विशिष्टता के कारण सौंदर्य या चमत्कार आया हो, तो वहां पर अर्थालंकार होता है।

उदाहरण – नील कमल सी मुख – प्रभा, सरस सुधा – से बोल |

 

अर्थालंकार के भेद – उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान, सन्देह, दृष्टान्त, अतिश्योक्ति, अन्योक्ति, विभावना, विरोधाभास, विशेषोक्ति, प्रतीप, अर्थान्तरन्यास, दीपक, अप्रस्तुत प्रशंसा, व्यतिरेक, स्मरण, उल्लेख, दृष्टांत, निदर्शना, समासोक्ति, पर्यायोक्ति, विशेषोक्ति, असंगति, यथासंख्य, व्याजस्तुति, प्रतिवस्तूपमा, तुलयोगिता, तद्गुण, अतद्गुण, मीलित, उन्मीलित, अपह्नुति, परिसंख्या, मुद्रा, लोकोक्ति, विनोक्ति, सहोक्ति, परिकर, परिकरांकुर आदि।

उपमा अलंकार (Upma Alankar)

(i) उपमा अलंकार:- जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है।

   उपमा अलंकार के 4 भेद होते है ।  

(a). उपमेय  – जिस वस्तु या व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है या जो वर्णन का विषय है।

(b). उपमान – वह वस्तु या व्यक्ति जिससे तुलना की जा रही है।

(c). वाचक शब्द – जिन शब्दों से उपमा अलंकार की पहचान होती है। जैसे – सा, सी, के समान, सम, जैसा, ज्यों, सरिस इत्यादि। 

(d). साधारण धर्म – उपमेय और उपमान के बीच समान गुणधर्म को साधारण धर्म कहते है।

नोट – यदि ये चारों तत्व उपस्थित हों तो ‘पूर्णोंपमा’ होती है । परंतु कई बार इनमे से एक या दो लुप्त भी हो जाते है तब उसे ‘लुप्तोंपमा’ उदहरण कहते है । 

उदाहरण – “पीपर-पात सरिस मन डोला।”  

स्पष्टीकरण – यहां ‘मन’ उपमेय, ‘पीपर पात’ उपमान, ‘सरिस’ वाचक शब्द एवं ‘डोला’ साधारण धर्म है।

रूपक अलंकार (Roopak Alankar)

 जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता हो, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है। 

उदाहरण – “पायो जी मैंने राम-रत्न धन पायो। 

स्पष्टीकरण  – यहां राम रतन (उपमेय) पर धन (उपमान) का आरोप है और दोनों में अभिन्नता है। 

उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar)

उत्प्रेक्षा अलंकार एक अलंकार है जिसमें शब्दों का अव्यवस्थित अनुक्रमण या अनुसरण होता है, जिससे वाक्य का अर्थ गूंथा-गूंथा होता है और पठन को रोचक बनाने में मदद मिलती है। इस अलंकार में शब्दों का अनियमित व्यवस्थापन होता है, जिससे पठक को अर्थ को खोजने में जोर देना पड़ता है।

उदाहरण: “उसका मुख मानो चन्द्रमा है।”

इस उदाहरण में मुख को चन्द्रमा की उपमेयता में उत्प्रेक्षित किया गया है।

(iv) भ्रान्तिमान अलंकार – जहां अत्यधिक सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान का भ्रम हो जाए, वहाँ ‘भ्रान्तिमान ‘अलंकार’ होता है। 

उदाहरण – जानि श्याम घनश्याम नाचि उठे बन मोर। यहाँ पर श्रीकृष्ण की श्याम रंग को देखकर सन्देह के कारण वन में मोर नाच उठे।

स्पष्टीकरण – घनश्याम (बादल) को श्याम जानकर जंगल में मोर नाचने लगते थे।

(v) सन्देह अलंकार – जब किसी वस्तु को देखकर संशय बना रहे, और निश्चय न हो पाए, तो वहाँ संदेह अलंकार होता है। 

उदाहरण – सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है। सारी ही की नारी है, कि नारी ही की सारी है।

स्पष्टीकरण – दी गई पंक्ति से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साड़ी है, इसलिए यह संदेह अलंकार है। 

(vi) अतिशयोक्ति अलंकार – जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। अर्थात जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं।

उदाहरण – हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग।। 

स्पष्टीकरण – उपरोक्त पंक्ति में हनुमान द्वारा लंका जलाने की घटना का बढ़ा- चढ़ा कर वर्णन किया गया है। 

(vii) विभावना – विभावना का अर्थ है ( विशेष प्रकार की कल्पना) – जहाँ बिना कारण के ही कार्य हो जाए वहाँ,  विभावना अलंकार होता है। 

उदाहरण – बिनु पग चलै सुनै बिनु काना। 

स्पष्टीकरण – वह (भगवान) बिना पैरों के चलता है और बिना कानों के सुनता है। 

(vii) प्रतीप अलंकार  – इसका अर्थ उल्टा, अर्थात विपरीत होता है। अर्थात् उपमेय को उपमान बना देना ही प्रतीप अलंकार होता है। 

उदाहरण – सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक।

स्पष्टीकरण – सीताजी के मुख (उपमेय) की तुलना बेचारा चन्द्रमा (उपमान) नहीं कर सकता। 

(viii) दृष्टान्त – जहां उपमेय, उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है, वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है। 

उदाहरण – एक म्यान में दो तलवारे, कभी नहीं रह सकती। किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है  । । 

स्पष्टीकरण – एक म्यान में दो तलवारे रहना वैसे ही असंभव है जैसे एक पति का दो पत्नियों के साथ रहना। 

(IX) अन्योक्ति – जहाँ पर किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाए वहाँ पर अन्योक्ति अलंकार होता है।

  उदाहरण – नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल। अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल।।

स्पष्टीकरण – इस पंक्ति में भौंरे को प्रताड़ित करने के बहाने कवि ने राज्य जयसिंह की काम लोलुपता पर व्यंग किया है। 

(X) विशेषोक्ति अलंकार :- विशेषोक्ति  का अर्थ है – विशेष उक्ति अर्थात् विशेषो में कारण के होने पर भी कार्य का न होना वर्णित होता है । उदाहरण – नेह न नैनिन को कछु, उपजी बड़ी बलाय। नीर भरे नितप्रति, तऊ न यास बुझाय।।

स्पष्टीकरण – यहाँ जल के नित्यप्रति रहने पर भी नेत्रों की प्यास नहीं बुझाना ही विशेषोक्ति अलंकार है। 

(XI) अपन्हुति अलंकार – अपन्हुति का अर्थ है  छिपाना अर्थात् प्रस्तुत को छिपाकर अप्रस्तुत का उस गोप्य पर आरोपण ही अपन्हुति अलंकार है।

उदाहरण – मैं जो कहा रघुवीर कृपाला। बंधु न होइ मोर यह काला।। 

स्पष्टीकरण – यहां भाई को भाई न कहकर काल शब्द पर विशेष बल दिया गया है।

(XII) अनन्वय अलंकार जब उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता और कहा जाता है कि उसके समान वही है, तब अनन्वय अलंकार होता है। जैसे-

उदाहरण – यद्यपि अति आरत मारत है, भारत के सम भारत है।

(XIII)  उल्लेख अलंकार – जहाँ पर किसी एक वस्तु को अनेक रूपों में ग्रहण किया जाए, तो उसके अलग-अलग भागों में बटने को उल्लेख अलंकार कहते हैं। अथार्त जब किसी एक वस्तु को अनेक प्रकार से बताया जाये वहाँ पर उल्लेख अलंकार होता है। 

उदाहरण – विन्दु में थीं तुम सिन्धु अनन्त एक सुर में समस्त संगीत।

(XIV) मानवीकरण अलंकार – जहाँ पर काव्य में जड़ में चेतन का आरोप होता है वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है अथार्त जहाँ जड़ प्रकृति पर मानवीय भावनाओं और क्रियांओं का आरोप हो वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है। 

उदाहरण – बीती विभावरी जागरी, अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नगरी।

(XV) काव्यलिंग अलंकार – जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई-न-कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है। 

उदाहरण – कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।

(XVI) दीपक अलंकार – जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है। 

उदाहरण –  चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।

                  अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।

(XVII) असंगति अलंकार – जहाँ आपतातः विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरन्य रणित हो वहाँ पर असंगति अलंकार होता है। 

उदाहरण – हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।

3. उभयालंकार:-

ऐसा अलंकार जिसमें शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का योग होता है अर्थात् वह अलंकार जो ‘शब्द’ तथा ‘अर्थ’ दोनों पर आधारित रहकर दोनों को चमत्कारी बनाता है। 

उभयालंकार के भेद – (i) संसृष्टि अलंकार (ii) संकर अलंकार। 

(i) संसृष्टि अलंकार – ऐसा अलंकार जिसमे शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों होते है, या केवल शब्दालंकार या अर्थालंकार होता है। 

उदाहरण: मनिमय रचित चारु चौबारे। जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।। 

(ii) संकर अलंकार – संकर उभयलंकार का निर्माण भी कई अलंकारो से मिलकर होता है। इनको अलग कर पाना सम्भव नहीं होता है।

अलंकारों (Alankar) में अंतर :- 

(क) यमक एवं श्लेष – यमक अलंकार में एक शब्द दो या उससे अधिक बार प्रयुक्त होते  है एवं प्रत्येक बार उनका अर्थ भिन्न-भिन्न होता है, जबकि श्लेष अलंकार में एक शब्द केवल एक ही बार प्रयुक्त होता है परंतु उसके विभिन्न अर्थ निकलते है।

(ख) उपमा एवं रूपक – उपमा में उपमेय एवं उपमान में समानता दिखाई देती है, जबकि रूपक में उपमेय तथा उपमान को एक मान लिया जाता है। 

(ग) उपमा एवं उत्प्रेक्षा – उपमा में उपमेय एवं उपमान में समानता दिखाई देती है, जबकि उत्प्रेक्षा में उपमेय में उपमान की संभावना की कल्पना की जाती है। 

(घ) भ्रांतिमान एवं संदेह – भ्रांतिमान अलंकार में समानता के कारण एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है, जबकि संदेह अलंकार में समानता के कारण अनिश्चय की स्थिति(संशय) बनी रहती  है।

इन्हें भी जाने !

➣अलंकारों के दो मुख्य भेद है । 

➣‘उत्पेक्षा में संभावना प्रकट की जाती है। 

➣‘अनुप्रास’ में व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है।

➣‘अन्योक्ति ‘ किसी की ओर प्रत्यक्ष संकेत होता है।

➣काव्य में अलंकारों के प्रयोग से सौन्दर्य आ  जाता है। 

➣‘अतिशयोक्ति’ में बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहा जाता है ।  

➣ ‘मानवीकरण’ में   बेजान पर चेतना का आरोप किया जाता है। 

➣‘श्लेष’ में शब्द एक ही बार आता  है, पर अर्थ अनेक निकलते है। 

➣‘यमक’ में शब्द जितनी बार आता है उसके उतने ही अर्थ निकलते है । 

➣उपमा और रूपक में उपमान – उपमेय का मेल होता है। ये समानता दर्शाते है । 

अलंकार(Alankar) से संबंधित विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नोत्तर  

भाषा में शब्द और अर्थ की दृष्टि से सौन्दर्य उत्पन्न करता है । – अलंकार 

➣अलंकार(Alankar) के तीन भेद है  – (1) शब्दालंकार  (2) अर्थालंकार  (3) उभयलंकार 

जहाँ एक व्यंजन की आवृति एक या अनेक बार हो, वहाँ होता है – वृत्यानुप्रास अलंकार 

वर्णों की एक से अधिक बार आवृत्ति  किस अलंकार में होती है । – अनुप्रास अलंकार

जहाँ शब्दों, शब्दांशों या वाक्यांशों की आवृति हो, किन्तु उनके अर्थ भिन्न – भिन्न हो – यमक अलंकार 

‘काली घटा का घमण्ड घटा’ यमक घटा – यमक अलंकार 

शब्दालंकार है – यमक अलंकार 

श्लेष अलंकार होता है – शब्दालंकार 

उपमा अलंकार में ‘उप’ का अर्थ है – समीप 

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय । या खाए बौराए नर, वा पाये बौराय।। – यमक अलंकार 

‘रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून । पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।। – श्लेष अलंकार 

➣‘पीपर पात सरिस मन डोला’ में  मन है । – उपमेय 

‘पीपर पात सरिस मन डोला’ । ‘पीपर पात’ उपमा अलंकार का अंग है – उपमान 

➣‘दीप सा मन जल चुका है।’ इस पंक्ति मेन  ‘वाचक’ शब्द है – सा 

शब्दालंकार है – अनुप्रास, यमक, श्लेष 

उपमेय में उपमान का अभेद आरोप होने पर होता है – रूपक अलंकार 

‘अर्थालंकार है – रूपक अलंकार 

सादृश्यमूलक अलंकार है – उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा 

प्रत्यक्ष के द्वारा अप्रत्यक्ष का चमत्कारपूर्ण वर्ण किस अलंकार का लक्षण है ? – अनुमान अलंकार 

 अलंकार का उपयोग (Use of Alankar)

अलंकार साहित्य को एक नवीन और अनूठा चार्म प्रदान करता है, जिससे वह सुंदर और प्रफुल्लित होता है। यह उसे अद्वितीयता और अलगाव की पहचान दिलाता है। इसके माध्यम से शब्दों का जादूगरी प्रभाव प्रस्तुत होता है, जो उन्हें आकर्षित बनाता है और भावनाओं को जागरूक करता है।

अलंकार वाक्यों को एक विशेषता और मजबूती प्रदान करता है, जिससे वे अधिक जीवंत और सामाजिक अनुभव को प्रस्तुत कर सकते हैं। इससे साहित्य की व्यक्तिगतता और उसका महत्व बढ़ता है। अलंकार का अभाव साहित्य को असंगत और अधूरा बना देता है, जैसे कि एक गीत बिना स्वर और ताल के।

Frequently Asked Questions

अलंकार(Alankar) और रस में अंतर क्या है?

अलंकार भाषा की सुंदरता और प्रभाव को बढ़ाता है, जबकि रस भावनाओं को प्रकट करने और पाठक में उन्हें उत्तेजित करने में मदद करता है।

वाक्याभिनय अलंकार क्या है?

वाक्याभिनय अलंकार में कवि वाक्यों के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करता है, जिससे पठकों को भावनाओं का संवेदना होता है।

हेतुभाषा अलंकार का क्या अर्थ है?

हेतुभाषा अलंकार में किसी वाक्य में किसी घटना या घटनाक्रम का कारण बताया जाता है।

द्वन्द अलंकार क्या है?

द्वन्द अलंकार में दो या दो से अधिक व्यक्ति, वस्तु या घटनाओं का वर्णन किया जाता है, जो अन्तर में समानता रखते हैं।

रसिताली अलंकार क्या होता है?

रसिताली अलंकार में कवि एक से अधिक विषयों के बारे में बात करते हैं, जो एक विशिष्ट समय या परिस्थिति में संबंधित होते हैं।

पदप्रभृति अलंकार का क्या मतलब है?

पदप्रभृति अलंकार में एक ही प्रकार के पदों को प्रयोग करके एक विशिष्ट छंद बनाया जाता है।

संक्षेप (Conclusion):

अलंकार, भाषा के साहित्यिक स्वर्ग में विविधता और विशेषता का अमूल्य रत्न है। इसके प्रयोग से वाक्यों की वाणी गाथा, भाव, और भावनाओं को सांगीतिक अद्भुतता में बदल देती है। अलंकार साहित्य की अद्वितीय दुनिया में एक नई दृष्टि प्रदान करता है, जिससे हमें उसकी अनगिनत गहराइयों का ज्ञान प्राप्त होता है।

अलंकार काव्य के आभूषण हैं। जैसे गहने किसी स्त्री की सुंदरता बढ़ाते हैं, वैसे ही अलंकार काव्य को और अधिक आकर्षक बनाते हैं।

‘अलंकार’ शब्द ‘अलम’ और ‘कार’ से मिलकर बना है। ‘अलम’ का अर्थ है ‘आभूषण’ और ‘कार’ का अर्थ है ‘बनाने वाला’। इसलिए अलंकार वह है जो सजावट करता है या सुंदरता बढ़ाता है।

मनुष्य स्वभाव से ही सौंदर्य का प्रेमी होता है। इसी कारण से समय के साथ कई नए अलंकारों का विकास हुआ है। ये अलंकार कविता को और अधिक मनमोहक बनाते हैं।

भारतीय साहित्य में कई प्रकार के अलंकार पाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं – अनुप्रास, उपमा, रूपक, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति और वक्रोक्ति। ये सभी अलंकार अपने-अपने तरीके से काव्य को सुंदर और प्रभावशाली बनाते हैं।

 

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