क्रिया विशेषण (Kriya visheshan)
क्रिया विशेषण (Kriya visheshan) – क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द क्रिया विशेषण कहलाते है। जैसे: हिरण तेज़ (क्रिया विशेषण) भागता(क्रिया) है।
अर्थ के आधार पर क्रियाविशेषण के चार भेद होते हैं:
1.कालवाचक क्रियाविशेषण – क्रिया की समय संबंधी विशेषता का बोध कराने वाले शब्द, कालकाचक क्रियाविशेषण कहलाते है। जैसे- आज, कल, परसों, सदा, पश्चात, प्रायः, हर रोज, नित्य, अक्सर, अभी, कभी, जब, तब, प्रातः सायं, प्रतिदिन, प्रतिमास, प्रतिवर्ष, तुरंत आदि।
उदाहरण – श्यामू कल मेरे घर आया था। परसों बरसात होगी। मैंने सुबह खाना खाया था। इन उदाहरणों में ‘कल’, ‘परसों’ और ‘सुबह’ शब्दों द्वारा क्रिया के काल (समय) का बोध हो रहा है। अतः ये कालवाचक क्रियाविशेषण है।
2.रीतिवाचक क्रियाविशेषण – जिस क्रियाविशेषण से क्रिया के करने या होने के रीति का बोध हो, उसे रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे- धीरे, जल्दी, चमुच, ठीक, अवश्य, कदाचित्, यथासम्भव, ऐसे, वैसे, सहसा, तेज़, सच, अत:, इसलिए, क्योंकि, नहीं, मत, कदापि, तो, हो, मात्र, भर आदि। उदाहरण – धीरे-धीरे चलिए। खरगोश तेजी से आगे निकल गया। जैसे राम ने चित्र बनाया, वैसे ही तुम भी बनाओ। इन उदाहरणों ‘धीरे-धीरे’ , ‘तेजी’ और जैसे-वैसे शब्दों के द्वारा क्रिया के होने की रीति का बोध हो रहा है। अतः ये रीतिवाचक क्रियाविशेषण है।
3.स्थानवाचक क्रियाविशेषण – जिस क्रियाविशेषण से क्रिया के होने का स्थान, दिशा का बोध हो, उसे स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहते है।
जैसे- ऊपर, नीचे, इधर, उधर, आसपास, यहाँ, वहाँ, जहाँ, तहाँ, अंदर, बाहर, दूर, निकट, चारों तरफ, चारों ओर भीतर, सामने, जिधर, सर्वत्र आदि। उदाहरण – पिता जी अंदर बैठे है। बच्चे ऊपर खेल रहे है। बिजली न होने से चारों ओर अँधेरा है। इन उदाहरणों में ‘अंदर’, ‘ऊपर’ और चारों ओर शब्दों द्वारा क्रिया के होने के स्थान का बोध हो रहा है। अतः ये स्थानवाचक क्रियाविशेषण है।
4.परिमाणवाचक क्रियाविशेषण – ऐसे क्रियाविशेषण शब्द जिनसे हमें क्रिया के परिमाण, संख्या या मात्रा का बोध हो, उसे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहते है। जैसे- बहुत, अधिक, अधिकाधिक, पूर्णतया, सर्वथा, कुछ, थोड़ा, काफ़ी, केवल, यथेष्ट, इतना, उतना, कितना, थोड़ा-थोड़ा, तिल-तिल, एक-एक करके, पर्याप्त; आदि ,जितना कुछ। उदाहरण – तुम थोड़ा अधिक खाओ। वह बहुत सोता है। अभी तक तुमने पर्याप्त नींद नहीं ली।
प्रयोग के आधार पर क्रियाविशेषण के तीन भेद होते हैं:
1.साधारण क्रियाविशेषण – ऐसे क्रिया विशेषण शब्द जिनका प्रयोग वाक्य में स्वतंत्र होता है, वे शब्द साधारण क्रिया विशेषण कहलाते हैं।
जैसे- अब, जल्दी, कहाँ आदि। उदाहरण- अरे! साँप कहाँ गया?, बेटा, जल्दी आओ।
- सयोंजक क्रियाविशेषण – जिन क्रिया विशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य से होता है, वह शब्द सयोंजक क्रिया विशेषण कहलाते हैं। उदाहरण- जहाँ तुम अभी खड़े हो, वहाँ घर हुआ करता था।
- अनुबद्ध क्रियाविशेषण – ऐसे शब्द जो निश्चय के लिए कहीं भी प्रयोग कर लिए जाते हैं, वे शब्द अनुबद्ध क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जैसे- तो, भर, भी, तक आदि। उदाहरण- यह काम तो गलत ही हुआ है। आपके आने भर की देर है।
रूप के आधार पर क्रियाविशेषण के तीन भेद होते हैं :
- मूल क्रियाविशेषण – ऐसे शब्द जो दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते यानी जो दूसरे शब्दों में प्रत्यय लगे बिना बन जाते है, वे शब्द मूल क्रियाविशेषण कहलाते हैं। जैसे- अचानक , फिर, नहीं, ठीक, पास, दूर, ऊपर, आज, सदा, आदि।
- स्थानीय क्रियाविशेषण – ऐसे अन्य शब्द-भेद जो बिना अपने रूप में बदलाव किए किसी विशेष स्थान पर आते हो। जैसे- वह अपना सिर पढेगा, तुम दौड़कर चलते हो।
- यौगिक क्रियाविशेषण – ऐसे क्रियाविशेषण जो किसी दूसरे शब्दों में प्रत्यय या पद आदि लगाने से बनते है, उन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं। जैसे- सबेरे, आजन्म, यहाँ , वहाँ , अब, चुपके , पहले, खाते, पीते इत्यादि ।