हिंदी वर्णमाला / Hindi Varnamala |
Hindi Varnamala) किसे कहते हैं?
किसी भी भाषा की अभिव्यक्ति ध्वनियों के माध्यम से जानने को मिलती है। जब हम जो बोलते हैं उसे ध्वनि कहा जाता है। इसी के माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं को हम प्रकट करते हैं और सामने वाले व्यक्ति तक उसे पहुंचाते हैं। दूसरी तरफ देखा जाए तो अगर हम विचार और भावनाएं लिखना चाहे तो इन्हें ध्वनि को लिखने के लिए हमें चिन्ह का उपयोग करना पड़ता है। ध्वनि के इन्हीं चिन्हों को वर्ण कहते हैं। भाषा के अंदर सबसे छोटी इकाई ध्वनि या वर्ण होता है। वर्णों के समूह को अक्षर के नाम से जाना जाता है। सभी वर्णो या अक्षरों को मिलाकर varnamala बनती है। वर्णों को व्यवस्थित समूह में रखने को वर्णमाला (Varnamala) कहते हैं।
वर्ण की परिभाषा – वर्ण को ‘अक्षर’ भी कहा जाता है। “भाषा की मूल ध्वनि और मूल ध्वनि के प्रतीक- चिह्नों को ‘वर्ण’ कहा जाता है।
अर्थात् ‘वर्ण उस मूल ध्वनि को कहा जाता है जिसका खंड नहीं किया जा सकता है।’ जैसे – अ,आ,क,च,ट,त,प,य,आदि।
हिंदी भाषा में वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहा जाता है, जिसमें कुल 52 वर्ण होते हैं। इनमें 11 मूल स्वर, 2 अयोगवाह वर्ण और 39 व्यंजन वर्ण शामिल होते हैं। हिंदी व्याकरण में पहले स्वर वर्ण आते हैं और उसके बाद व्यंजन वर्ण आते हैं।
हिंदी में ध्वनियों (वर्ण) के दो प्रकार होते है : (1) स्वर, (2) व्यंजन ।
स्वर – स्वर वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से बिना किसी रुकावट के किया जा सकता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में भी सहायक होते हैं। हिंदी वर्णमाला में स्वरों की संख्या 11 है – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। पहले स्वरों की संख्या 13 थी क्योंकि अयोगवाह वर्ण “अं” और “अः” को भी स्वरों में ही गिना जाता था।
स्वरों का वर्गीकरण – हिंदी वर्णमाला में स्वरों का वर्गीकरण तीन प्रकार से होता हैं।
- मात्रा / उच्चारण के आधार पर
- व्युत्पत्ति / बनावट के आधार पर
- प्रयत्न के आधार पर
- मात्रा / उच्चारण के आधार पर – मात्रा का अर्थ ‘उच्चारण में लगने वाले’ समय से होता है। हिंदी वर्णमाला में मात्रा या उच्चारण के आधार पर स्वर के 3 भेद होते हैं – ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर, प्लुत स्वर ।
ह्रस्व स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या 1 होती है। ह्रस्व स्वर हिंदी में 4 हैं – अ, इ, उ, ऋ। ह्रस्व स्वर को छोटी स्वर या एकमात्रिक स्वर या लघु स्वर भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। इनमें मात्राओं की संख्या 2 होती है। दीर्घ स्वर हिंदी में 7 हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर को बड़ा स्वर या द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं।
प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहा जाता है। आमतौर पर इनका प्रयोग दूर से बुलाने, पुकारने अथवा चिंतन – मनन करने में किया जाता है। जैसे – आऽऽ, ओ३म्, राऽऽम आदि। इनकी कोई निश्चित संख्या नहीं होती है। किन्तु कुछ भाषाविद् इनकी संख्या 8 निर्धारित करते हैं। पहचान – जिनमें ३ ( ओ३म्) चिह्न आता है वे संस्कृत शब्द होते हैं तथा जिनमें ऽ (राऽऽम) चिह्न का प्रयोग होता है वे हिंदी शब्द होते हैं।
- व्युत्पत्ति / बनावट के आधार पर – इनकी कुल संख्या 11 है। हिंदी वर्णमाला में व्युत्पत्ति या बनावट के आधार पर स्वरों को दो भागों में विभाजित किया जाता है – मूल स्वर, संधि स्वर। संधि स्वर को पुनः दो भागों में विभाजित किया जाता है – दीर्घ या सजातीय या समान स्वर और संयुक्त या विजातीय या असमान स्वर।
(i) मूल स्वर – मूल स्वर ऐसे स्वरों को कहते हैं जिनकी उत्पत्ति की कोई जानकारी नहीं होती हैं। मूल स्वरों को ही शांत स्वर या स्थिर स्वर भी कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है – अ, इ, उ, ऋ।
(ii) दीर्घ संधि स्वर – इनकी कुल संख्या 7 है। संधि स्वर को दो भागों में विभाजित किया जाता है – दीर्घ सजातीय या समान स्वर, विजातीय या असमान स्वर।
(क) दीर्घ सजातीय या समान स्वर – जब दो सजातीय या समान स्वर एक आपस मे एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब जो एक नया स्वर बनाता है उसे दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 3 है – आ, ई, ऊ।
(ख) संयुक्त या विजातीय या असमान स्वर – जब दो विजातीय या भिन्न या असमान स्वर एक दूसरे से जुड़ते हैं, तब जो एक नया स्वर बनता है जिसे संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 4 है – ए, ऐ, ओ, औ।
महत्त्वपूर्ण बिंदु: दीर्घ संधि स्वरों की संख्या 7 है, दीर्घ सजातीय स्वरों की कुल संख्या 3 है, और विजातीय स्वरों की संख्या 4 है।
- प्रयत्न के आधार पर – हिंदी की वर्णमाला में प्रयत्न के आधार पर अर्थात् जीभ के स्पर्श से उच्चारित होने वाले स्वर को तीन भागों में बाँटते हैं – अग्र स्वर, मध्य स्वर, पश्च स्वर।
अग्र स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ के अग्रभाग का प्रयोग होता है, उन्हें अग्र स्वर कहा जाता है। इनकी कुल संख्या 4 है – इ, ई, ए, ऐ।
मध्य स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण हेतु जीभ का मध्यभाग कार्य करता है, वे मध्य स्वर कहलाते हैं। इनकी कुल संख्या 1 है – अ।
पश्च स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ के पश्चभाग का प्रयोग होता है, उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। इनकी कुल संख्या 5 है – आ, उ, ऊ, ओ, औ।
इन्हे भी जाने –
(i) आगत स्वर – आगत स्वर अरबी – फारसी के प्रभाव से आए हैं। हिंदी की वर्णमाला में इनकी संख्या केवल और केवल एक (1) है। आगत स्वर का उच्चारण ‘आ’ तथा ‘ओ’ के बीच में होता है। ये स्वर है ऑ (ॉ )। शब्दों में इसका प्रयोग: जैसे – डॉक्टर, डॉलर आदि। |
(ii) हिंदी में शुद्ध स्वरों की संख्या 10 होती हैं। |
(iii) देवनागरी लिपि व संस्कृत में स्वरों की संख्या 13 होती है। (ऋ, लृ को जोड़कर) |
(iv) हिंदी में स्वरों की संख्या 11 होती हैं। |
(v) ‘ऋ’ का वर्तमान उच्चारण र् + इ = ‘रि’ होने लगा है तथा इसका उच्चारण करते समय जिह्वा मूर्धा को स्पर्श करती है; अतः यह हिंदी में शुद्ध स्वर नहीं है, इसलिए हिंदी में शुद्ध स्वरों की संख्या 10 हैं। |
मुख खुलने के आधार पर – इसके आधार पर स्वरों के 4 भेद होते हैं – संवृत स्वर, अर्द्ध संवृत स्वर,अर्द्ध विवृत स्वर, विवृत स्वर।
संवृत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में मुख सबसे कम खुलता है अर्थात् लगभग बंद रहता है, वे संवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – इ, ई, उ, ऊ, ऋ स्वरों का उच्चारण।
अर्द्ध संवृत स्वर – इसमें मुख संवृत की स्थिति से कुछ अधिक खुलता है अर्थात् मुख आधे से कम खुलता है, वे अर्द्ध संवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – ए, ओ स्वरों के उच्चारण में ।
विवृत स्वर – जिस स्वर के उच्चारण में मुख सबसे अधिक खुलता है अर्थात् मुख पूरा खुल जाता है, वे विवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – आ के उच्चारण में।
अर्द्ध विवृत स्वर – विवृत की तुलना में मुख थोड़ा कम खुलता है अर्थात् मुख आधे से अधिक खुलता है, वे अर्द्ध विवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – अ, ऐ, औ, (ऑ) के उच्चारण में ।
ओष्ठ / मुखाकृति के आधार पर – इसके आधार पर स्वर के 2 भेद होते है – वर्तुल स्वर / गोलाकार / वृतमुखी / वृत्ताकार, आवृत्तमुखी / प्रसृत / आवृत्ताकर ।
वर्तुल स्वर / गोलाकार / वृतमुखी / वृत्ताकार – वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय ओष्ठ गोल आकार के हो जाते हैं अर्थात् वृत्त जैसी आकृति गृहण कर लेते है। जैसे – उ, ऊ, ओ, औ ।
आवृत्तमुखी / प्रसृत / आवृत्ताकर – वे स्वर जिनका उच्चारण करते समय ओष्ठ गोल आकार के नहीं होते अपितु फैल जाते है।
जैसे – अ, आ, इ, ई,ए, ऐ (6) ।
नोट – ‘ऋ’ अर्द्ध वृत्ताकार स्वर है।
मुखाकृति के आधार पर | जीभ के भाग के आधार पर | |||
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अग्र भाग | मध्य भाग | पश्च भाग | संख्या | |
संवृत स्वर | इ, ई, (ऋ)* | – | उ,ऊ | 4 |
अर्द्ध संवृत स्वर | ए | – | ओ | 2 |
अर्द्ध विवृत स्वर | ऐ | अ | औ, (ऑ)* | 4 |
विवृत स्वर | – | – | आ | 1 |
स्वरों की संख्या | 4+1* = 5 | 1 | 5 +1* = 6 | – |
उच्चारण के आधार पर स्वरों के 6 भेद होते हैं । | ||
1. | कंठ्य स्वर | अ,आ |
2. | तालव्य स्वर | इ, ई |
3. | कंठोष्ठय स्वर | ओ, औ |
4. | कंठ्य – तालव्य स्वर | ए, ऐ |
5. | ओष्ठ्य स्वर | उ, ऊ |
6. | मूर्धन्य स्वर | ऋ |
अयोगवाह ध्वनियाँ – वे ध्वनियाँ जिनका किसी वर्ण से योग नहीं होता हैं, उन्हें अयोगवाह ध्वनियाँ कहते हैं। ये निम्नलिखित 2 हैं – अं, अः, जैसे – कंपन, पुनः ।
अयोगवाह | अं | अः |
नाम | अनुस्वार | विसर्ग |
उच्चारण स्थान | नासिक | कंठ (काकल्य संस्कृत भाषा में ) |
घोषत्व | सघोष | सघोष |
प्राणत्व | अल्पप्राण | महाप्राण |
उच्चारण | ड़्,ञ्,ण्,न्, म् | अह् |
अनुस्वार (ं) – जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय वायु केवल नाक से बाहर निकलती है, तब उसे व्यक्त करने के लिए सिरोरेखा के ऊपर बिंदु (ं) का चिह्न लगाया जाता है। इस चिह्न को ही अनुस्वार कहते है; जैसे – बंदर, कंधा, संग, लंगर आदि।
अनुनासिक (ँ ) – जब किसी वर्ण का उच्चारण करते समय वायु नाक और मुख दोनों अंगों से बाहर निकलती है तब उस वर्ण के ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगाया जाता है। इसे ही अनुनासिक कहते है; जैसे – पँखुड़ी, ताँगा, धँसना, हँसी आदि ।
जब सिरोरेखा के ऊपर कोई मात्रा न हो, तब चंद्रबिंदु (ँ) का प्रयोग किया जाता है, अन्यथा बिंदु (ं) का प्रयोग होता है; जैसे – यहीं, कहाँ, कहीं आदि ।
- हिंदी में अनुनासिक वर्णों की कुल संख्या 5 होती हैं जो निम्नलिखित है – ङ, ञ, ण, म, न ।
विसर्ग (:) – इस ध्वनि का उच्चारण ‘ह’ के समान होता है। यह स्वर नहीं है। इसे ‘अ’ के साथ जोड़कर ‘अः’ की तरह लिखा जाता है। इसका प्रयोग प्रायः संस्कृत के तत्सम शब्दों में किया जाता है; जैसे – प्रातः, अतः, स्वतः आदि ।
कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु –
- ‘ऋ’ का प्रयोग केवल तत्सम शब्दों में होता है,अतः इसे तत्सम स्वर कहते है (शेष स्वर तत्सम व तद्भव दोनों होते है )
- हिंदी वर्णमाला में सजातीय स्वर वर्ण क्रम – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, तथा विजातीय स्वर वर्ण क्रम – ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
- स्वर स्वतः उच्चारित होते है अर्थात् इनके उच्चारण में अन्य किसी ध्वनि की सहायता नहीं लेनी पड़ती है।
- स्वरों का उच्चारण करते समय स्वर – तंत्रियों में कंपन्न होता है, अतः सभी स्वर घोष / सघोष होते है।
- स्वरों के उच्चारण में श्वास की मात्रा कम लगती है,अतः सभी स्वर ‘अल्पप्राण’ होते है।
- ‘ऑ’ को आगत या गृहीत स्वर कहते है यह ‘आ’ तथा ‘ओ’ के बीच की ध्वनि है।
- अयोगवाह ध्वनियों का प्रयोग मुख्यतः तत्सम शब्दों में होता है।
- स्वर ध्वनियों के अंतर्गत कोई भी ध्वनि दंत्य ध्वनि नहीं है।
- विसर्ग हमेशा तत्सम होता है।
स्वर ध्वनियों से संबंधित विविध विभिन्न परीक्षाओं Hindi Varnamala से पूछे गए प्रश्नोत्तर –
● हिंदी में ध्वनियाँ कितने प्रकार की होती है? |
2 (स्वर, व्यंजन) |
● वर्णमाला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या कितनी है? | 25 |
● मूल दीर्घ स्वर कौन से है। | आ, ई, ऊ |
● शब्द की सबसे छोटी इकाई कहलाती है। | वर्ण |
● एक से अधिक वर्णों के सार्थक मेल को क्या कहते है। | शब्द |
● भाषा की सार्थक लघुत्तम इकाई किसे माना जाता है? | शब्द |
● हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या कितनी है? | चार |
● हिंदी भाषा में स्वरों की संख्या कितनी है? | चार |
● तत्सम व तद्भव दोनों हो सकता है। | अनुस्वार |
● इ, ई एवं ऋ है। | स्त्रीलिंग वर्ण |
● कौन सा स्वर संवृत है। | इ |
● स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय को कहते है | मात्रा |
● ’स्वर’ किसका भेद है? | वर्ण |
● मात्रा स्वर को क्या कहते है? | समरूप (ग्रेफीम) |
● हिंदी की अग्र, अवृत्ताकार, संवृत स्वर ध्वनि है। | इ |
व्यंजन वर्ण – जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है, वे वर्ण व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात् बिना स्वरों की सहायता के व्यंजन बोले नहीं जा सकते। हिंदी वर्णमाला में व्यंजन की कुल संख्या 39 हैं – क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष,त्र, ज्ञ, श्र, ड़, ढ़।
मूल व्यंजनों की संख्या (33)
वर्ग | उच्चारण स्थान | व्यंजन वर्ण | संख्या |
क वर्ग | कंठ्य | क ख ग घ ङ | 5 |
च वर्ग | तालव्य | च छ ज झ ञ | 5 |
ट वर्ग | मूर्धन्य | ट ठ ड ढ ण | 5 |
त वर्ग | दंत्य | त थ द ध न | 5 |
प वर्ग | ओष्ठ्य | प फ ब भ म | 5 |
स्पर्श व्यंजनों की कुल संख्या = 25 | |||
अंतःस्थ | य र ल व | 4 | |
ऊष्म | श ष स ह | 4 | |
मूल व्यंजनों की कुल संख्या = 33 | |||
संयुक्त व्यंजन | क्ष त्र ज्ञ श्र | 4 | |
उत्क्षिप्त / द्विगुण व्यंजन | ड़ ढ़ | 2 | |
व्यंजनों की कुल संख्या = 39 |
नोट:- संयुक्त व्यंजन – 4 (क्ष, त्र, ज्ञ,श्र ), इसका निर्माण इस प्रकार होता है: क्ष – (क् + ष) , त्र – (त् + र) , ज्ञ – (ज् + ञ) , श्र – (श् + र) । आगत व्यंजन– ज़्, फ़ ।
व्यंजनों का वर्गीकरण –
(i) उच्चारण के आधार पर – इसके आधार पर 7 भेद होते है।
कंठ्य व्यंजन – क, ख, ग, घ, ड़, ह
तालव्य व्यंजन – च, छ, ज, झ, ञ
मूर्धन्य व्यंजन – ट, ठ, ड, ढ़, ण, र, ष
दंत्य व्यंजन – त, थ, द, ध, न, ल, स
ओष्ठ्य व्यंजन – प, फ, ब, भ, म
नासिक्य व्यंजन – ड़्, ञ्, ण्, न्, म्
दंतोष्ठय व्यंजन – व
महत्त्वपूर्ण बिंदु : न, ल, स ये संस्कृत भाषा में वर्त्स्य व्यंजन थे, लेकिन हिंदी भाषा में आकर दंत्य व्यंजन हो गए। परीक्षा में यदि ये ध्वनियाँ पूछी जाए और विकल्प में अग्र वर्त्स्य व दंत्य दोनों आए तो वर्त्स्य को ही प्राथमिकता देंगे।
(ii) प्राणत्व के आधार पर – इसके आधार पर इसके 2 भेद होते है – अल्पप्राण, महाप्राण।
अल्पप्राण – जिन वर्णों के उच्चारण में श्वास (प्राण) वायु की मात्रा कम (अल्प) होती है, उन्हें अल्पप्राण वर्ण कहते हैं। ( प्रत्येक वर्ग में प्रथम, तृतीय, पंचम वर्ण तथा अन्तस्थ व्यंजन ‘य, र, ल, व’) अर्थात् कुल 19 वर्ण।
* अल्पप्राण वर्णों की संख्या: 19 व्यंजन + 1 अनुस्वार + 11 स्वर = 31
महाप्राण – इनके उच्चारण में फेफड़ों से बाहर निकलने वाली वायु की मात्रा अल्पप्राण के अपेक्षाकृत अधिक होती है; ( प्रत्येक वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ वर्ण) तथा श, ष, स, ह (ऊष्म वर्ण) अर्थात् कुल 14 वर्ण ।
* महाप्राण वर्णों की संख्या: 14 व्यंजन + 1 विसर्ग = 15
(iii) घोषत्व / झंकार / कंपन के आधार पर – इसके 2 भेद होते है – अघोष, घोष / सघोष ।
अघोष – इन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन नहीं होता है; (प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण) तथा श, ष, स अघोष है । अघोष वर्णों की संख्या : 13
घोष / सघोष – इन वर्णों के उच्चारण में स्वरतंत्रियों में कंपन होता है । ( प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ तथा पंचम वर्ण) तथा य, र, ल, व, ह, + अं ,अः ( एवं सभी स्वर सघोष होते है )। घोष / सघोष वर्णों की कुल संख्या = 20 व्यंजन + अनुस्वार + विसर्ग + 11 स्वर = 33
(iv) प्रयत्न के आधार पर – इसके 8 भाग है :- स्पर्श व्यंजन, स्पर्श संघर्षी , अंतःस्थ, अर्द्धस्वर, लुंठित, पार्श्विक, ऊष्म, उत्क्षिप्त।
स्पर्श व्यंजन (25) – व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुख के विभिन्न भागों या अंगों जैसे कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत या होठ को स्पर्श करती है, वे स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। स्पर्श व्यंजनों की कुल संख्या क से म तक अर्थात् 25 है। उन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है, और प्रत्येक वर्ग में पाँच -पाँच व्यंजन हैं। स्पर्श व्यंजनों का उच्चारण करते समय मानव जिह्वा का द्वार बंद रहता है। हिंदी वर्णमाला में ‘क’ वर्ग, ‘च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग, ‘प’ वर्ग के सभी वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते है।
स्पर्श संघर्षी व्यंजन (4) – जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय प्राणवायु मुख्य अवयवों को स्पर्श करती हुई संघर्ष के साथ बाहर निकलती हो उन्हें स्पर्श संघर्षी व्यंजन कहते हैं। उदाहरण – च, छ, ज, झ ।
अंतःस्थ व्यंजन (4) – अन्तःस्थ व्यंजन, स्वर और व्यंजन के बीच उच्चारित किए जाते हैं। अन्तःस्थ व्यंजनों के उच्चारण के समय जीभ, मुंह के किसी भी हिस्से को अधिक नहीं छूती है। अंतस्थ व्यंजन चार प्रकार के होते हैं – य, र, ल और व हैं। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय प्राणवायु अन्य व्यंजन के उच्चारण की तुलना में मुख से काफी कम निकलती है। इन चारों व्यंजनों को स्पर्शहीन वर्ण के नाम से भी जाना जाता है।
अर्द्धस्वर व्यंजन (2) – जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय मुखांग न के बराबर स्पर्श करते है, उन्हे अर्द्ध स्वर कहते है। जो निम्नलिखित है – य, व ।
लुंठित व्यंजन – ‘र’ का उच्चारण करते समय जिह्वा ऊपर की तरफ मुड़ जाती है, अतः इसे लुंठित व्यंजन कहते है; तथा ‘र’ का उच्चारण करते समय जिह्वा में कंपन होता है तो इसे प्रकंपित व्यंजन कहते है। अतः इस ध्वनि (र) को ‘लुंठित’ एवं ‘प्रकंपित’ के रूप में जाना जाता है। पार्श्विक व्यंजन- जिस ध्वनि का उच्चारण करते समय वायु जिह्वा के दोनों पार्श्व (बगल) से बाहर निकलती है, उसे ‘पार्श्विक व्यंजन’ ध्वनि कहते है; जैसे – ‘ल’।
ऊष्म व्यंजन : वे व्यंजन जिनके उच्चारण में वायु घर्षण के कारण ऊष्म होकर बाहर निकलती है, तथा न के बराबर स्पर्श करती है उन्हें ‘ऊष्म’ तथा ‘ईषत् / स्पृष्ट’ व्यंजन कहते है। ये निम्नलिखित 4 है:- श, ष, स, ह ।
प्रयत्न – ध्वनि के उच्चारण में मुखांगों द्वारा किया गया प्रयास ‘प्रयत्न’ कहलाता है, प्रयत्न के 2 भेद होते हैं – आभ्यंतर प्रयत्न, बाह्य प्रयत्न।
आभ्यंतर प्रयत्न – वर्ण के उच्चारण के आरंभ में मुखांगों का प्रयास ही आभ्यंतर प्रयत्न कहलाता है,जो निम्नलिखित है – विवृत, द्विविवृत, स्पृष्ट, ईषत् ।
विवृत (खुलना) – इसमें स्वर ध्वनि ‘आ’ आता है।
द्विविवृत (थोड़ा कम खुलना) – इसमें अंतःस्थ व्यंजन य, र, ल, व आते है ।
स्पृष्ट (स्पर्श) – इसमें ‘क’ वर्ग से लेकर ‘प’ वर्ग तक के सभी व्यंजन आते है ।
ईषत् (स्पर्श ऊष्म) – इसमें श, ष, स, ह आते है।
बाह्य प्रयत्न – वर्ण के उच्चारण के साथ बाद का प्रयास ही बाह्य प्रयत्न कहलाता है; इसके 2 भेद होते हैं – नाँद / गूँज के आधार पर, श्वास के आधार पर ।
नाँद / गूँज के आधार पर – इसके अंतर्गत घोष (प्रत्येक वर्ग का तृतीय, चतुर्थ व पंचम वर्ण) और अघोष ( प्रत्येक वर्ग का प्रथम व द्वितीय वर्ण) वर्ण आते है।
श्वास के आधार पर – इसके अंतर्गत अल्पप्राण और महाप्राण के वर्ण आते है।
उत्क्षिप्त व्यंजन – ‘ड़’ और ‘ढ़’ का उच्चारण करते समय जिह्वा ऊपर उठकर झटके के साथ नीचे आती है, अतः इन्हे उत्क्षिप्त व्यंजन कहते है। उत्क्षिप्त व्यंजन को ताड़नजात व्यंजन / विकसित व्यंजन / द्विगुण व्यंजन भी कहते है ।
हिंदी में नव विकसित व्यंजन – ड़,ढ़, न्ह, म्ह, ल्ह ( हिंदी के संरचनात्मक विकास का परिणाम ) ‘ड़’ तथा ‘ढ़’ क्रमशः ‘ड’ तथा ‘ढ़’ से विकसित हुए है; ‘न’, ‘ल’ तथा ‘म’ अल्पप्राण व्यंजन है। आज इनके महाप्राण रूप में ‘न्ह’, ‘म्ह’, ‘ल्ह’ स्वतंत्र व्यंजनों की भांति विकसित हो गए है, जो न, ल, म, के स्थान पर प्रयुक्त होकर शब्द के अर्थ को परिवर्तन करने की क्षमता रखते है । जैसे – काना (न् ), कुमार (म्), कान्हा (न्ह्), कुम्हार (म्ह्), आला (ल्), आल्हा (ल्ह् )।
हिंदी वर्णमाला से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :-
⋆ सामान्य व्यवहारिक ( बोलचाल) हिंदी में वर्णों की संख्या 44 है।
⋆ क़, ख़, ग़, ज़, फ़ फारसी से आगत व्यंजन है। ज़,फ़ ऐसे वर्ण है जिनका प्रयोग अंग्रेजी के शब्दों में भी होता है।
⋆ मांसपेशियों की दृढ़ता के आधार पर स्वरों के निम्नलिखित 3 भेद होते है – शिथिल (अ, इ, उ ), दृढ़ (ई, ऊ), मध्यम (ए) ।
⋆ ‘अ’ एक मात्र ऐसा स्वर है जिसकी कोई मात्रा नहीं मानी जाती है। अतः हिंदी मात्राओं की संख्या (10) है।
⋆ फारसी से आगत ध्वनियों की संख्या 5 है। वर्तमान में इनमें से हिंदी में ज़, फ़ का ही प्रयोग देखने को मिलता है। इनमें से क़ स्पर्श ध्वनि है तथा अन्य शेष स्पर्श – संघर्षी है। क़, ख़, ग़ जिह्वामूलीय व्यंजन है क्योंकि इनका उच्चारण जिह्वा के मूल भाग में स्पंदन से होता है।
⋆ नुक्ता का प्रयोग सर्वप्रथम राज्य शिव प्रसाद सितारे हिन्द ने शुरू किया था। जैसे: राज़ – रहस्य , राज – शासन, ज़रा – घोड़ा, जरा – बुढ़ापा, बाग़ – बगीचा, बाग – घोड़े की लगाम ।
⋆ मानक हिंदी में वर्णों की संख्या (52) है। (11 स्वर + 2 आयोगवाह + 33 व्यंजन + 4 संयुक्ताक्षर + 2 उत्क्षिप्त )
⋆ ‘ऑ’ अंग्रेजी से आगत / गृहीत स्वर है इसका प्रयोग अंग्रेजी शब्दों में होता है।
व्यंजन वर्णों से संबंधित विभिन्न परीक्षाओं Hindi Varnamala से पूछे गए प्रश्नोत्तर :-
⋆ ‘य’ का उच्चारण स्थान है – तालु से
⋆ ‘ट’ वर्ग में किस प्रकार के व्यंजन हैं? – मूर्धन्य
⋆ ‘ड् ‘ का उच्चारण स्थान होता है – मूर्धन्य
⋆ हिंदी की मूर्धन्य ध्वनियों हैं – ट, ठ, ड, ढ
⋆ उच्चारण स्थान की दृष्टि से शुद्ध हैं – स – दन्त्य, श – तालव्य, ष – मूर्धन्य
⋆ ‘थ’ किस वर्ग का व्यंजन है? – दन्त्य
⋆ दन्त्य वर्ण है – त, थ, द, ध, न
⋆ ‘हिंदी की कण्ठ ध्वनि है – अ, आ, क-वर्ग, ह ,विसर्ग (:)
⋆ ‘कण्ठ्य वर्ण हैं- – आ, ह, विसर्ग (:)
⋆ इ, ई, च, छ, ज, झ, ञ और श आदि का उच्चारण किससे होता है ? – तालव्य से
⋆ जिनका उच्चारण ऊपर के दाँतों पर जीभ लगाने से होता है, उसे क्या कहते हैं? – दन्त्य
⋆ दन्त्य ध्वनि हैं। – त, थ, द, ध, न, ल, स
⋆ हिंदी की ओष्ठ्य व्यंजन ध्वनि है – प, फ, ब, भ, म
⋆ ओष्ठ्य वर्ण है – उ, ऊ (प-वर्ग)
⋆ ‘तालु से उच्चारण होने वाले व्यंजन – च, छ, ज, झ, ञ
⋆ अनुनासिक व्यंजन कौन-से होते है? – वर्ग का पंचमाक्षर (ङ, ञ, ण, न , म)।
⋆ कामता प्रसाद गुरु ने बाह्य प्रयत्न के अनुसार व्यंजनों के कितने भेद माने हैं? – दो (अल्पप्राण, महाप्राण)
⋆ हिंदी की स्पर्श, घोष, महाप्राण, ओष्ठ्य व्यंजन ध्वनि है – भ्
⋆ ‘श’ का उच्चारण स्थान है – तालु से
⋆ तालव्य ध्वनि है – श
⋆ अन्तःस्थ वर्ण हैं – य, र, ल, व
⋆ अर्धस्वर कहलाता है – य, व
⋆ स्पर्श व्यंजन हैं – क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग, प-वर्ग
⋆ उच्चारण की दृष्टि से ‘श्, ‘ष’ स्’ व्यंजन किस प्रकार के हैं? – ऊष्म
⋆ हिंदी वर्णमाला में ऊष्म व्यंजन हैं – श, ष, स, ह
⋆ दो व्यंजन जब एक साथ मिलते हैं, तो क्या कहलाते हैं? – संयुक्त व्यंजन
⋆ ‘प्रसन्नता’ शब्द में ध्वनि है – युग्मक ध्वनि
⋆ ध्वनियों में कौन-सी दंतोष्ठ है? – व
⋆ संयुक्त व्यंजन है । – श् + र = श्र
⋆ संयुक्त व्यंजन हैं। – क्ष, त्र. ज्ञ, श्र
⋆ स्पर्श-संघर्षी व्यंजन ध्वनि होती है – च, छ, ज, झ।
⋆ ड, ढ ध्वनियों के विषय में कथन शुद्ध है – ये मूर्धन्य उत्क्षिप्त ध्वनियाँ हैं।
⋆ आधुनिकरण को दृष्टि से ‘ब’ वर्ण का वैशिष्ट्य है – दंतोष्ठ्य , स्पर्श, अल्पप्राण, घोष, निरनुनासिक
⋆ ‘क’ व्यंजन के विषय में सही है – अल्पप्राण, अघोष, स्पर्शी, कण्ठ्य ध्वनि
⋆ जब एक ही ध्वनि का द्वित्व हो जाए तब वह क्या कहलाता है – युग्मक ध्वनियाँ
⋆ ऐसी कौन-सी दो मात्रायेँ है जिनका प्रयोग तो किया जाता है किन्तु उनका समावेश स्वर में नहीं किया जाता? – अं, अः
⋆ हिंदी वर्णमाला में अयोगवाह वर्ण हैं – अं , अः
⋆ उच्चारण की दृष्टि से ‘सम्बल’ ध्वनि का कौन-सा गर्गीकरण है – सम्पृक्त ध्वनि
⋆ प्रत्येक शब्द की वर्तनी के सभी वणों को उसी क्रम में अलग- अलग दिखाना क्या कहलाता है – वर्ण-विच्छेद
⋆ कौन सा व्यंजन स्पर्श संघर्षी है । – ज
⋆ सभी स्पर्श व्यंजन कौन-से समूह में हैं? – क, च, प, द
⋆ ‘र’ का विवरण है – वर्त्स्य, लुण्ठित, संघोष, अल्पप्राण व्यंजन।
⋆ पार्श्विक व्यंजन है – ल
⋆ स्वर तंत्रियों के आधार पर व्यजनों को कितने वर्गों में बाँटा गया है – दो (घोष, अघोष)।
⋆ हिंदी वर्णमाला में ‘छ’ से ‘ड’ के ठीक बीच में कौन-सा अक्षर आता है – ञ ( च, छ, ज, झ, [ञ ], ट, ठ, ड)
⋆ अंतःस्थ और ऊष्म वर्ण कितने है – 8
⋆ हिंदी शब्दकोश में ‘क’ के बाद कौन सा व्यंजन दिखाई देता है – क्ष
⋆ हिंदी भाषा की कुल वर्ग लिपियाँ है। – 52
⋆ संयुक्त व्यंजन है – क् + ष = क्ष
⋆ ‘त्र’ किन वर्णों के सहयोग से बना है? – त् + र = त्र
⋆ संयुक्त व्यंजन ‘ज्ञ’ बनता है। – ज् + ञ = ज्ञ
⋆ काकल्य वर्ण है – ह
⋆ जिन ध्वनियों की गणना स्वर में की जाती है और न ही व्यंजन में उसे क्या कहते हैं? – आयोगवाह
⋆ हिंदी वर्णमाला में ‘अं ‘ और ‘अः’ क्या है? – अयोगवाह
⋆ पाश्विक ध्वनि है – ल
⋆ ‘ड़’ और ‘ढ़’’ को कहा जाता है – विकसित वर्ण
⋆ च, छ, ज, झ उदाहरण हैं – स्पर्शी-संघर्षी व्यंजन के
⋆ निम्न शब्द में ‘र’ व्यंजन है- – मात्र, मुर्धा, क्रम
⋆ सही कथन है – य, र, ल, व ध्वनियों अर्धस्वर कहलाती है।
⋆ ‘पक्षी’ में कितने व्यंजन वर्ण हैं? – तीन
⋆ वर्णों के कितने भेद हैं? – दो (स्वर, व्यंजन)
⋆ हिंदी शब्दकोश में ‘क्ष’ का क्रम किस वर्ण के बाद आता है? – क
हिन्दी वर्णमाला पुनर्विलोकन
⋆ मध्य स्वर हैं – अ
⋆ पश्च स्वर हैं – आ, उ, ऊ, ओ, औ, ऑ
⋆ संवृत स्वर हैं – इ, ई, उ, ऊ, (ऋ)
⋆ अर्द्ध संवृत हैं – ए, ओ,
⋆ विवृत हैं – आ
⋆ अर्द्ध विवृत है अ, ऐ, औ, (ऑ)
⋆ हिंदी में मात्राओं की संख्या है – 10
⋆ ह्रस्व स्वर/लघु स्वर (एकमात्रिक) हैं – अ, इ, उ, ऋ
⋆ अग्र स्वर हैं – इ, ई, ए, ऐ (ऋ)
⋆ दीर्घ स्वर/गुरु स्वर (द्विमात्रिक) हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
⋆ मूल स्वर/जड़ स्वर/नैसर्गिक स्वर/बीजाक्षर स्वर हैं – अ, इ, उ, ऋ
⋆ गुण संधि स्वर हैं – अ + इ = ए, अ + ए = ऐ
⋆ वृद्धि संधि स्वर/मिश्रित संधि स्वर है – अ+उ =ओ,अ + ओ = औ
⋆ आगत स्वर हैं – ऑ
⋆ मूल व्यंजनों की संख्या है – (33)
⋆ स्पर्श व्यंजनों की संख्या है – (25)
⋆ उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या है – (2)
⋆ अंतःस्थ व्यंजनों की संख्या है – (4)
⋆ हिंदी में शुद्ध स्वरों की संख्या है – 10
⋆ हिंदी में स्वरों की संख्या है – 11
⋆ ऊष्म व्यंजनों की संख्या है। – (4)
⋆ संयुक्त व्यंजनों की संख्या है । – (4)
⋆ कुल व्यंजनों की संख्या है – (39)
⋆ दीर्घ /गुरु/संधि स्वर/कृत्रिम स्वर/बनावटी स्वर हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
⋆ मूल दीर्घ स्वर/सजातीय संधि स्वर हैं- आ, ई, ऊ
⋆ संयुक्त स्वर/विजातीय संधि स्वर हैं- ए, ऐ, ओ, औ
⋆ संयुक्त व्यंजन – क्ष (क् + ष् ), त्र (त् + र), ज्ञ (ज् +ञ ), श्र (श् +र )
⋆ अन्तःस्थ व्यंजन हैं – य, र, ल, व
⋆ अर्धस्वर हैं – य, व
⋆ लुंठित व्यंजन हैं – र
⋆ पाश्विक व्यंजन हैं – ल
⋆ ऊष्म व्यंजन हैं – श, ष, स, ह
⋆ उत्क्षिप्त व्यंजन हैं – ड़, ढ़
⋆ संयुक्त व्यंजन है – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र
⋆ ऊष्म-संघर्षी व्यंजन हैं – स, श, ष, ह
⋆ कठ्य वर्ण हैं। – अ, आ, अ:, क, ख, ग, घ, ङ,ह ।
⋆ नासिक्य व्यंजन हैं । ड़् , ञ्, ण् , न्, म्
⋆ तालव्य व्यंजन हैं। – इ, ई, च् , छ्, ज् , झ् , ञ्, श् , य् ।
⋆ कंठतालव्य स्वर हैं – ए, ऐ
⋆ कंठोष्ठ्य स्वर हैं – ओ, औ
⋆ दंत्योष्ठ्य व्यंजन हैं – व्
⋆ मूर्धन्य व्यंजन है- ऋ, ट् ,ठ् , ड् , ढ़् , (ढ़), ण, ष
⋆ दंत्य व्यंजन हैं- त्, थ् , द, ध् , न्, ल, स
⋆ ओष्ठ्य व्यंजन हैं- उ, ऊ, प्, फ, ब्, भ् , म्
⋆ अयोगवाह अनुस्वार (ं), विसर्ग (:)
⋆ स्पर्श रहित/काकल्य ध्वनि / स्वरयंत्रामुखी/घोष ध्वनि /ऊष्म संघर्षी ध्वनि हैं – ‘ह्’
⋆ अघोष व्यंजन हैं – प्रत्येक वर्ग के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा श, ष, स
⋆ सघोष व्यंजन है – प्रत्येक वर्ग के तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण तथा य, र, ल, व, ह (एवं सभी स्वर सघोष हैं)
⋆ अल्पप्राण व्यंजन हैं। – प्रत्येक वर्ग में प्रथम, तृतीय, पंचम वर्ण, स्वर तथा अन्तःस्थ वर्ण (य, र, ल, व)
⋆ महाप्राण व्यंजन हैं। – प्रत्येक वर्ग के द्वितीय व चतुर्थ तथा ऊष्म वर्ण (श, ष, स, ह)
इन्हें भी जानें:-
⋆ भाषा की सार्थक इकाई होती है – वाक्य
⋆ अक्षर से छोटी इकाई होती है – ध्वनि (वर्ण)
नोट – जैसे राम शब्द में दो अक्षर (रा म) एवं वर्ण चार हैं – (र् आ म् अ)
⋆ उपवाक्य से छोटी इकाई होती है – पदबंध
⋆ पदबंध से छोटी इकाई होती है – पद (शब्द)
⋆ पद से छोटी इकाई होती है – अक्षर
- वाक्य से छोटी इकाई होती है – उपवाक्य
⋆ वर्णमाला : वर्णों के व्यवस्थित समूह को ‘वर्णमाला’ कहते हैं।
⋆ वर्ण: भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। इस ध्वनि को ‘वर्ण’ कहते हैं।
⋆ निरनुनासिक : केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं। जैसे- अपना, आप, इधर, उधर, घर आदि।
विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए बहुविकल्पीय प्रश्न –
UPPSC, UP RO/ARO, UPSSSC, UP POLICE SI/CONSTABLE, PET, SSC GD, BIHAR POLICE, UPPSC, UP (TET, STET, TGT ,PGT), DSSSB (PRT/TGT/PGT), KVS (TGT/PRT/PGT/Nursery), NVS (TGT/PGT), NCERT (PRT), CTET और अन्य प्रतियोगी परीक्षों में विगत वर्षों में पूछे गए महत्त्वपूर्ण वर्णमाला प्रश्न । |
Q.1. नासिक्य व्यंजन हैं।
Sol.1. ड़् , ञ्, ण् , न्, म्
हिंदी वर्णमाला अभ्यास प्रश्न
Q.1. नासिक्य व्यंजन हैं
(क) ड़् (ख) म (ग) ब (घ) फ
FAQ
हिन्दी वर्णमाला में कितने वर्ण होते हैं?
वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में उच्चारण के आधार पर 52 वर्ण होते हैं। इनमें 11 स्वर और 41 व्यंजन होते हैं। लेखन के आधार पर 56 वर्ण होते हैं इसमें 11 स्वर , 41 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं।
हिंदी में कुल कितने व्यंजन है?
हिंदी में कुल 39 व्यंजन होते हैं, जिसमें 33 व्यंजन मानक हिंदी व्यंजन होते हैं, चार संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र ) होते हैं और दो उत्क्षिप्त व्यंजन होते हैं।
क से ज्ञ तक कितने अक्षर होते हैं?
क से तक ज्ञ 36 अक्षर होते हैं।
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